मुंबईः अंग्रेजों के जमाने में आनंद बख्शी फौज की नौकरी करते थे. फिर उन्होंने अचानक ही नौकरी छोड़ी और बंबई की ओर रुख कर लिया. गायक बनने के लिए बंबई पहुंचे आनंद बख्शी अपने गानों के लिए तो मशहूर हुए ही, साथ ही साथ अपनी सादगी और शरारतों से भी लोगों का दिल जीत लिया. आनंद बख्शी ने 1962 से लेकर 2002 तक में करीब 600 से ज्यादा फिल्मों के लिए तकरीबन 3300 से ज्यादा गाने लिखे और शब्दों के बाजीगर कहलाए. उनके गानों में जो अहसास है वो आज भी लोगों के दिलों को छू जाते हैं. आम आदमी के गीतकार और शायर आनंद बख्शी आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन अपने लिखे गानों के जरिए वह आज भी लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं. उनके गानों में जितनी सरलता थी अंदाज में उतनी ही शरारत.
असल जिंदगी में आनंद बख्शी बहुत ही सरल और शरारती थे. एक दिन तो उन पर उन्हीं की शरारत भारी पड़ गई थी वो भी एक गिलास दूध के चक्कर में. जी हां, एक बार एक गिलास दूध के चक्कर में आनंद बख्शी बुरे फंस गए थे और उनकी जमकर पिटाई हुई थी. बात है 1943 की, जब घरवालों ने आनंद बख्शी को जम्मू की एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने के लिए भेज दिया था.
दरअसल, घरवालों का मानना था कि अगर आनंद बख्शी बोर्डिंग स्कूल में रहेंगे तो पिंडी (रावलपिंडी, पाकिस्तान) उनका उनके शरारती दोस्तों से पीछा छूट जाएगा और गाने-बजाने और एक्टिंग का शौक भी दूर हो जाएगा, क्योंकि आनंद बख्शी को हमेशा से ही फिल्मों का शौक था. बोर्डिंग स्कूल में रह रहे आनंद बख्शी ने अपने दोस्तों के साथ किताबें बेचकर ट्रेन से बंबई जाने का फैसला किया. किताबें बेचकर वह रावलपिंडी स्टेशन पहुंचे, लेकिन दोस्त नहीं आए.
आनंद बख्शी अंजान शहर में थे तो बंबई जाने का सपना भी चूर-चूर हो गया. उन्हें पता था कि अगर घरवालों को इसकी भनक लगी तो खूब पिटाई होने वाली है. उन्होंने साल के पहले शुरुआत में ही आनंद बख्शी ने मुक्केबाजी में दाखिला ले लिया था. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां मुक्केबाजों को एक गिलास दूध मिलता था. मुक्केबाजी के लिए टीचर बहुत ही जालिमाना तरीके से बच्चों को मुक्केबाजी सिखाते थे. रोजाना एक बच्चे को चुनते और तब तक मारते जब तक वह बेहोश ना हो जाए.
आनंद बख्शी ने खुद इस बात का जिक्र किया था और कहा था- ‘मैं किसी तरह हमेशा ही बचने में सफल रहता और मेरी बारी नहीं आई. मैं चालाकी से दूरी बनाए रहता और मुक्केबाजी के दस्ताने बस पहनकर रोज किसी तरह एक गिलास दूध पीता. कई महीने तक ऐसा चलता रहा और फिर एक दिन उनकी नजर मुझ पर पड़ गई. उन्होंने कहा कि मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा. चलो अपने दस्ताने पहनो मैं तुम्हें सिखाता हूं कि मर्द अपना बचाव कैसे करते हैं. इसके बाद उन्होंने तब तक मेरी पिटाई की जब तक मैं बेहोश नहीं हो गया. वो मुफ्त का दूध पीने का मेरा आखिरी दिन था.’ आनंद बख्शी से जुड़े इस किस्से का जिक्र उनके बेटे राकेश बक्शी ने अपनी किताब ‘नग्मे किस्से बातें यादें’ में किया है.
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FIRST PUBLISHED : March 23, 2024, 08:44 IST